Monday, May 20, 2024
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खासी जनजाति (Khasi Tribes)

खासी(खासिया या खासा)एक जनजाति है। खासी जनजाति मातृसत्तात्मक परंपरा पर आधारित है। इसमें  उपनाम ( सरनेम ) और संपत्ति मां से बेटी को मिलती है। पितृसत्तात्मक समाज में बच्चे का नाम पिता से जुड़ा होता है, लेकिन खासी  समुदाय में ऐसा नहीं होता है। खासी जनजाति के व्यक्तियों की नाक चपटी, मुँह चौड़ा तथा सुघड़ होता है। ये लोग हृष्टपुष्ट और परिश्रमी होते हैं।

खासी जनजाति का निवास क्षेत्र कहाँ हैं

यह जनजाति पहले म्यंमार में रहती थी । इसके बाद खासी  जनजाति ने  म्यंमार से अप्रवास किया और भारत के पूर्वी असम में आकर रहने लगी । इसके बाद खासी जनजाति के लोग धीरे-धीरे मेघालय में आकर बसने लगे। खासी जनजाति की भाषा खासी है। खासी लोगों की आबादी मेघालय में और कुछ हिस्सा असम, मणिपुर और पश्चिम बंगाल में निवास करता है। खासी जनजाति मेघालय के खासी और जयंतिया पहाड़ी जिलों में रहती हैं। इसका विस्तार  उत्तरी ढलान ब्रह्मपुत्र घाटी तक और दक्षिणी ढलान सुरमा घाटी तक जाता है।

खासी जनजाति की प्रमुख विशेषताए

हर जनजाति की अपनी अलग – अलग विशेषता होती हैं। जो उन्हें दूसरी जनजाति से अलग करती हैं। खासी जनजाति की भी अलग विशेषता हैं जिनके बारे में हम यहां जानेंगे।

मातृसत्तात्मक परिवार

खासी जनजाति की  सबसे प्रमुख विशेषता उनका मातृसत्तात्मक परिवार है। परिवार की वंशावली माता से चलती है। सम्पत्ति की स्वामिनी भी वही होती है। संयुक्त परिवार की संरक्षिका सबसे छोटी पुत्री होती है। वही घर की संपत्ति की मालिक होती है। परंपरागत पारिवारिक जायदाद बेचना निषिद्ध है।

इस जनजाति में माता-पिता की संपत्ति पर पहला अधिकार महिलाओं का होता है। परिवार की सबसे छोटी बेटी पर सबसे अधिक जिम्मेदारी होती है। वही घर की संपत्ति की मालिक होती है।

सबसे ज्यादा संपत्ति छोटी बेटी को मिलती है:- खासी समुदाय की यह मान्यता हैं कि सबसे छोटी बेटी ही परिवार के पास ज्यादा समय तक रहती हैं। बेटी ही सबसे ज्यादा अपने माता पिता और अपने परिवार की देखभाल करती हैं। इसलिए खासी जनजाति में सबसे छोटी बेटी को विरासत में  सबसे ज्यादा संपत्ति मिलती है।

 छोटी बेटी को माता-पिता, अविवाहित भाई-बहनों और संपत्ति की देखभाल भी करनी पड़ती है। छोटी बेटी को ‘खाद्दु’ कहा जाता है। खाद्दु को मिलने वाली संपति ‘खाडू’ कहलाती हैं।

लड़का विवाह के बाद ससुराल जाता हैं

 पितृसत्तात्मक समाज में  विवाह होने पर लड़की  ससुराल जाती हैं वही खासी जनजाति में लड़का ससुराल जाता हैं। लड़का अपने सुसराल में ही रहता है। खासी परम्परा के अनुसार पुरूष की विवाहपूर्व कमाई पर मातृपरिवार का और विवाहोत्तर कमाई पर पत्नी के परिवार का अधिकार होता है।

विवाह के लिए कोई विशेष रस्म नहीं है। विवाह को पूरा करने के लिए दूल्हा और दुल्हन के बीच अंगूठियों या सुपारी की थैलियों का आदान प्रदान किया जाता हैं। लड़का और लड़की को अपना जीवन साथी चुनने की पूरी आजादी दी जाती है। खासी समुदाय किसी भी प्रकार का  दहेज नहीं लिया जाता है। जो कि इस समुदाय की, एक खास विशेषता है। अपने ही कुल में विवाह वर्जित है।

लड़की और माता पिता की सहमति होने पर लड़का ससुराल में आना जाना शुरू कर देता है। संतान होते ही वह स्थायी रूप से ससुराल में निवास करने लगता है। संबंधविच्छेद (तलाक) भी अक्सर सरलता पूर्वक हो जाते  हैं। संतान पर माता का अधिकार होता हैं, पिता का कोई अधिकार नहीं होता हैं ।

लड़की होने पर मनाई जाती हैं खुशियाँ

आधुनिक समाज के विपरीत खासी जनजाति में लड़का पैदा होना बुरा माना जाता है और लड़की के पैदा होने पर खुशियाँ मनाई जाति हैं। लड़की के जन्म पर यहां जश्न होता है ,वहीं लड़के के जन्म पर मातम। लड़कियों पर यहां कोई रोक टोक नहीं है जैसे आधुनिक पुरुषप्रधान मानसिकता में लड़कियों पर होती है।

खासी जनजाति का आर्थिक जीवन कैसा हैं

यह समुदाय झूम खेती करके अपनी आजीविका चलाता है। इस जनजाति में लिंग के आधार पर श्रम विभाजन किया गया है।आर्थिक जीवन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। वे निर्माता और विक्रेता दोनों  हैं। खासी जनजाति कुटीर उद्योगों और औद्योगिक कलाओं में बेंत और बाँस का काम, लोहार, सिलाई, हथकरघा बुनाई और कताई, कोकून पालन, लाख उत्पादन, पत्थरबाज़ी, ईंट बनाना, आभूषण बनाना, मिट्टी के बर्तन, लोहा गलाना और मधुमक्खी पालन शामिल हैं।

खासी जनजाति का धार्मिक जीवन कैसा हैं

इस जनजाति के अधिकांश लोगों ने ईसाई धर्म अपना लिया है, हालांकि कुछ वर्गों ने अभी भी अपने पारंपरिक धर्म अपना रखा हैं। जिसे ‘का नियाम खासी’ (Ka Niam Khasi) और ‘नियाम त्रे’ (Niam tre) के नाम से जाना जाता है।  इस जनजाति में  हिंदू धर्म के अलावा, इस्लाम और जैन धर्म भी क्रमशः प्रचलित हैं।

खासी जनजाति के संगीत और नृत्य

संगीत के साथ खासी जनजाति का  गहरा जुड़ाव है। खासी जनजाति विभिन्न तरह के वाद्य यंत्रों जैसे गिटार, बांसूरी, ड्रम आदी को गाते बजाते हैं।  खासी जनजाति  झीलों, झरनों, पहाड़ियों आदि  की प्रशंसा करने वाले गीतों के शौकीन हैं और अपनी भूमि के लिए प्यार का इजहार भी करते हैं। खासी जनजाति नृत्य और संगीत में  ड्रम, डुइटारस और गिटार, बांसुरी, पाइप और झांझ जैसे वाद्ययंत्रों का उपयोग करते हैं।

नोंगक्रेम नृत्य (Nongkrem Dance) खासी समुदाय द्वारा अच्छी फसल, शांति और समृद्धि के लिए सर्वशक्तिमान ईश्वर को धन्यवाद देने का एक धार्मिक त्योहार है। जो अक्टूबर / नवंबर के दौरान सालाना आयोजित किया जाता है।

शाद सुक मिन्सीम (Shad Suk Mynsiem) खासी समुदाय का एक  हर्षित हृदय का नृत्य हैं। यह अप्रैल में शिलांग में आयोजित होने वाला एक वार्षिक धन्यवाद नृत्य है। पुरुष और महिलाएं, पारंपरिक सजावट में सजे-धजे ढोल और बांसुरी की संगत में नृत्य करते हैं। यह उत्सव तीन दिनों तक चलता है।

खासी जनजाति का की वेशभूषा कैसी होती हैं

पारंपरिक खासी पुरुष पोशाक “जिम्फोंग” या बिना कॉलर वाला लंबा आस्तीन का कोट पहनते है, जो सामने की ओर पेटी द्वारा बांधा जाता है। अब खासी लोगों ने पश्चिमी पोशाक अपना ली है। औपचारिक अवसरों पर, वे “जिम्फोंग” और धोती में एक सजावटी कमर-पट्टी के साथ दिखाई देते हैं।

खासी पारंपरिक महिला पोशाक कपड़े के कई टुकड़ों के साथ विस्तृत है, जो शरीर को एक बेलनाकार आकार देती है। औपचारिक अवसरों पर, वे सिर पर चांदी या सोने का मुकुट पहनती  हैं। खासी महिला ‘जैनसेम’ नामक एक पोशाक पहनती है जो टखनों तक ढीली होती है। उसके शरीर का ऊपरी हिस्सा ब्लाउज में जकड़ा हुआ है। औपचारिक अवसरों पर, ‘जिम्पियन’ के ऊपर पहना जाने वाला असम मुगा रेशम का एक लंबा टुकड़ा होता है जिसे ‘का जैनसेम धरा’ कहा जाता है। खासी 24 कैरेट सोने से बने  पेंडेंट पहनती हैं जिसे  ‘किंजरी कसीर’ कहा जाता है। खासी महिलाये उत्सव के अवसर पर  ‘पैला’ कहे जाने वाले गले में मोटी लाल मूंगा मोतियों की माला भी पहनते हैं।

खासी जनजाति मातृसत्तात्मक क्यों हैं

मेघालय की खासी जनजाति के मातृसत्तात्मक परंपरा को लेकर कई बातें प्रचलित हैं। कुछ लोगों का कहना है कि  इस समुदाय के पुरुष युद्ध पर चले गए और पीछे महिलाओं को छोड़ गए। इसलिए  महिलाओं ने अपने बच्चों को अपना नाम दे दिया। वहीं, कुछ का ये  कहना है कि ये परंपरा इसलिए शुरू हुई, क्योंकि खासी महिलाओं के कई जीवनसाथी होते हैं। ऐसे में सवाल पैदा होता है, बच्चे का पिता कौन? इस कारण खासी महिलाओं ने पिता की जगह अपना  नाम देना शुरू कर दिया।

हाल के वर्षों  में यहां के  कई खासी पुरुषों ने इस प्रथा में बदलाव लाने की मांग की है। खासी पुरुषो का कहना हैं कि वे  महिलाओं को नीचा नहीं दिखाना चाहते हैं , बल्कि बराबरी का हक मांग रहे हैं।

इस जनजाति के अलावा मेघालय की अन्य दो जनजातियों (गारो और जयंतिया) में भी मातृसत्तात्मक प्रथा है। इन दोनों जनजातियों में यही व्यवस्थाएं चलती हैं।

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