चीन की आधिकारिक समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अध्यक्षता में पोलित ब्यूरो की बैठक के दौरान चीन ने अपनी जनसँख्या की नीति में बदलाव को मंजूरी दी हैं । 31 मई 2021 को चीन की नई जनसंख्या नीति घोषणा की है । इसमें प्रत्येक माता-पिता को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति होगी।
Table of Contents
एक बच्चे की नीति के क्या प्रभाव हैं
चीन की जनसँख्या नीति में यह बदलाव हाल ही में जारी जनसँख्या आंकड़ों के बाद आया हैं , जिसमें बच्चों के जन्म में नाटकीय गिरावट देखी गई थी। चीन की सरकार द्वारा जारी की गई सातवीं राष्ट्रीय जनगणना के आंकड़ों के अनुसार सभी 31 प्रांतों, स्वायत्त क्षेत्रों और नगरपालिकाओं को मिलाकर चीन की कुल जनसंख्या 1.41178 अरब हो गई है ।
जो 2010 के आंकड़ों के मुकाबले 5.8 प्रतिशत या 7.2 करोड़ ज्यादा है। इन आंकड़ों में हांगकांग और मकाउ को शामिल नहीं किया गया है। नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक देश की जनसंख्या 2010 के मुकाबले 5.38 प्रतिशत या 7.206 करोड़ बढ़कर 1.41178 अरब हो गई है।
जनगणना के मुताबिक, पिछले दशक में चीन में बच्चों के पैदा होने की रफ्तार का औसत सबसे कम रहा । इसका मुख्य कारण चीन की टू-चाइल्ड पॉलिसी को बताया गया। आंकड़ों में बताया गया कि साल 2020 में चीन में सिर्फ 12 मिलियन बच्चे पैदा हुए, जबकि 2016 में ये आंकड़ा 18 मिलियन था। यानी
चीन में साल 1960 के बाद बच्चों के पैदा होने की संख्या भी सबसे कम स्तर पर पहुँच गई हैं । जनसंख्या विशेषज्ञों के मुताबिक संतुलित जनसंख्या के लिए यह जरूरी होता है कि प्रति महिला जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या ( रिप्लेसमेंट रेट ) 2.1 रहे। लेकिन चीन में यह दर 1.7 हो गई है। जो सभी के लिए चिंता का कारण बना हुआ हैं।
क्या है चीन की एक बच्चे की नीति
एक बच्चे की नीति चीन का जनसँख्या नियंत्रण कार्यक्रम था। जिसे चीनी सरकार द्वारा 1980 के दशक में पुरे राष्ट्र में लागू किया गया था। ताकि चीनी परिवारों को एक बच्चे तक सीमित किया जा सके। एक बच्चे की नीति को लागू करने के लिए परिवारों के लिए वित्तीय भत्तों की पेशकश और गर्भनिरोधक प्रदान करने से लेकर जबरन नसबंदी और जबरन गर्भपात किये गये। 2015 के अंत में चीन सरकार ने घोषणा की कि, प्रति परिवार एक बच्चे की नीति वर्ष 2016 में समाप्त हो जाएगी।
एक बच्चे की नीति कब शुरू की गई थी
1949 में जनवादी गणराज्य की स्थापना के साथ ही चीन ने जन्म नियंत्रण और परिवार नियोजन के उपयोग को बढ़ावा देना शुरू कर दिया था। 1976 में माओत्से तुंग की मृत्यु के बाद तक इस तरह के प्रयास छिटपुट और स्वैच्छिक रहे। 1970 के दशक के अंत तक चीन की आबादी तेजी एक अरब (one billion) तक पहुच रही थी।
देंग शियाओपिंग की अध्यक्षता में देश के नए नेतृत्व ने तेजी से बढ़ रही जनसंख्या वृद्धि दर पर अंकुश लगाने के लिए गंभीरता से विचार करना शुरू कर दिया। 1978 के अंत में एक स्वैच्छिक कार्यक्रम की घोषणा की गई थी। जिसमें परिवारों को दो से अधिक बच्चे नहीं पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था, एक बच्चे को प्राथमिकता दी जा रही थी।
1979 में प्रति परिवार एक ही बच्चा सीमित रखने की मांग बढ़ी। हालाँकि, उस सख्त नीति को तब पूरे देश के प्रांतों के बीच असमान रूप से लागू किया गया था ।1980 तक केंद्र सरकार ने देश भर में एक-बच्चे की नीति को मानकीकृत करने की मांग की।
25 सितंबर 1980 को, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति द्वारा पार्टी सदस्यता के लिए प्रकाशित एक सार्वजनिक पत्र- ने सभी से एक बच्चे की नीति का पालन करने का आह्वान किया था। उस दिनांक को अक्सर एक बच्चे की नीति के “आधिकारिक” के रूप में आरंभ करने की तिथि माना जाता हैं ।
एक बच्चे की नीति विवादास्पद क्यों है
एक बच्चे की नीति इसके लागू होने के साथ ही विवादों में गिर गई थी। यह नागरिकों के प्रजनन जीवन में सरकार द्वारा एक कट्टरपंथी हस्तक्षेप था। इसके लागु करने के लिए कम कठोर कदम जैसे कि गर्भनिरोधक प्रदान करना और अनुपालन के लिए प्रोत्साहन देना से लेकर कठोर कदम जैसे जबरन नसबंदी और जबरन गर्भपात तक सम्मिलित थे।
कार्यक्रम को सार्वभौमिक रूप से लागू नहीं किया गया था। शहरो की तुलना में गावों में यह नीति पूर्ण रूप से लागू नहीं हुई थी।जिन दम्पति का पहला बच्चा विकलांग था उन्हें दूसरा बच्चा पैदा करने की अनुमति दी गई थी।
एक बच्चे की नीति के क्या प्रभाव हैं
1980 के बाद चीन में प्रजनन दर और जन्म दर दोनों में कमी आई चीनी सरकार ने अनुमान लगाया कि लगभग 400 मिलियन जन्मों को रोका गया था। चूंकि आमतौर पर बेटों को बेटियों पर अधिक पसंद किया जाता था, इसलिए चीन में लिंग अनुपात पुरुषों की ओर तिरछा हो गया, और कन्या भ्रूणों के गर्भपात की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ मारे गए या अनाथालयों में रखी गई महिला शिशुओं की संख्या में वृद्धि हुई। एक बच्चे की नीति को रद्द करने के बाद भी, चीन की जन्म और प्रजनन दर कम रही, जिससे देश की आबादी बहुत तेजी से बूढ़ी हो रही थी और कार्यबल सिकुड़ रहा था।
एक बच्चे की नीति कब समाप्त हुई
जब चीनी सरकार को यह महसूस हुआ कि एक बच्चे की नीति के कारण लिंगानुपात में असंतुलन हों रहा हैं, कार्यशील कार्यबल कम हों रहा हैं और समाज में बूढों की संख्या में वृद्धि हों रही हैं तो वर्ष 2015 के अंत में चीनी सरकार ने एक बच्चे की सीमा को समाप्त कर दिया । वर्ष 2016 से, सभी परिवारों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी गई।
क्यों बदलाव कर रहा हैं चीन अपनी जनसँख्या नीति में
वर्ष 2016 में, चीन ने अपनी दशकों पुरानी एक बच्चे की नीति को समाप्त कर दिया था मई 2021 से चीन ने दम्पतियों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी हैं।
क्या कारण हैं की चीन की नई जनसंख्या नीति घोषित करनी पड़ी
- एक बच्चे की नीति के कारण जनसँख्या लिंगानुपात पुरूषो के पक्ष में हों गया। जब अधिकांश परिवारों को एक बच्चे तक सीमित कर दिया गया था, तो लड़की का होना बेहद अवांछनीय हो गया था। जिसके परिणामस्वरूप कन्या भ्रूणों के गर्भपात में वृद्धि हुई, अनाथालयों में रखी गई महिला बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई।
- असमान लिंगानुपात के कारण अब ऐसी स्थिति पैदा हों गई हैं कि चीनी पुरूषों को विवाह के लिए महिलाएं उपलब्ध नहीं हों पा रही हैं। अब स्थिति ऐसी हों गई हैं कि चीनी पुरुष विवाह के लिए पाकिस्तान, नेपाल, वियतनाम, मंगोलिया और कई दक्षिणी एशियाई देशों ने महिलाएं ला रहे हैं।
- चीन की जनसँख्या में वृद्ध लोगों का अनुपात बढता जा रहा हैं और कार्यशील जनसँख्या का अनुपात घट रहा हैं। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2050 तक चीन की आबादी का एक तिहाई हिस्सा वृद्ध लोगों का होगा। चीन सबसे बूढ़े लोगों वाला देश होगा। यह किसी भी देश के लिए चिंता का विषय होता है।
- दो बच्चों की अनुमति के बाद भी चीनी दम्पतियों द्वारा इस नीति को नहीं अपनाया गया क्योंकि चीन के शहरों में बच्चों की परवरिश करने की लागत बहुत ज्यादा हैं।
- जनसंख्या बढ़ने की धीमी रफ्तार और वृद्ध लोगों की बढती जनसँख्या के कारण चीन में श्रमिकों की कमी हो रही हैं । उपभोग स्तर में भी गिरावट आ रही हैं। जिसका असर भविष्य में देश के आर्थिक परिदृश्य पर भी होगा।
- चीन की घटती कार्यशील जनसँख्या के कारण चीन को डर हैं कि चीन आर्थिक क्षेत्र में भारत से पिछड़ नहीं जाये। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जून 2019 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार चीन में जहां आबादी में कमी आएगी वहीं भारत 2027 तक दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश के तौर पर चीन से आगे निकल जाने का अनुमान है।
चीन के जनसंख्या विशेषज्ञों के अनुसार चीन अपनी आबादी को एक सीमा से ज्यादा घटने नहीं देना चाहता है। उनके अनुसार इस पर और अधिक अनुसंधान की जरूरत है कि किसी दंपत्ति को कितने बच्चों की अनुमति होनी चाहिए। मसलन, तीन बच्चों की इजाजत दी जाए या फिर जनसंख्या नीति को पूरी तरह रद्द कर दिया जाए। चीन की नई जनसंख्या नीति में साफ़ दिखता हैं की घटती आबादी चीन के नीति निर्माताओं के लिए बड़ी चिंता का कारण बन गई है। इसलिए भविष्य में चीन की जनसँख्या नीति और अधिक परिवर्तन हों तो इसमें किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।