Monday, May 20, 2024
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सोने का अधिकार : Right to Sleep

सोना एक जैविक आवश्यकता है। जिसके साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। नींद की स्थिति किसी व्यक्ति के प्रदर्शन एवं मनोदशा को प्रभावित कर सकती है। नींद की अवस्था में शरीर के परिकृष्ट तंत्र, शरीर विज्ञान के लगभग हर पहलू की मरम्मत एवं रखरखाव में शामिल होते हैं। नींद से व्यक्ति को ऊर्जा प्रदान होती है। इसीलिए सोना प्रत्येक व्यक्ति के लिए बहुत ही आवश्यक है। यह जीवन की महत्वपूर्ण जरूरत है। सोने का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति के लिए हैं।

सोने का महत्व

सोना मानव के स्वस्थ, अस्तित्व एवं कल्याण के लिए एक आवश्यक घटक है। नींद किसी व्यक्ति को मानसिक व शारीरिक परेशानियों से उबरने में मदद करता है। नींद की कमी से चिड़चिड़ापन तथा दक्षता की कमी जैसी समस्याएं पैदा होती है। सोने की कमी से कार्डियो, पाचन विकार और मनोवैज्ञानिक समस्याएं हो सकती है ।किसी भी व्यक्ति को ऐसे स्वस्थ वातावरण में रहने का अधिकार है। जहां उसकी नींद में कोई बाधा ना हो। यह उसका अधिकार है, कि उसे आराम से सोने दिया जाए ।अगर किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न होती है तो उसके अधिकार का हनन होता है।

सोने के संवैधानिक प्रावधान

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1 )और अनुच्छेद 21 के अंतर्गत नागरिकों को सभ्य वातावरण का अधिकार दिया गया है। इन अनुच्छेदों के अनुसार नागरिक को रात में शांति पूर्वक रहने व सोने का अधिकार है।

ये अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रदत जीवन के अधिकार के आवश्यक तत्व है। भारत के लोगों को सोने एवं अवकाश लेने का अधिकार है।

भारत में दूसरे सभी अधिकारियों की तरह कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत सोने का अधिकार भी दिया गया है। विभिन्न भारतीय कानूनों में शोर को ध्वनि प्रदूषण माना गया है। ध्वनि प्रदूषण (विनियमन एवं नियंत्रण) नियम 2000 और अन्य पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ध्वनि प्रसारण की अधिकतम सीमा औद्योगिक क्षेत्र में 75 डेसिबल तथा आवासीय क्षेत्रों में दिन में 55 डेसिबल तथा रात में 45 डेसिबल निर्धारित की गई है।

सोना मौलिक अधिकार के रूप में

भारतीय न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 21 की व्यापक व्याख्या की गई है। मुख्य अधिकार में कई उप अधिकार शामिल किए गए हैं। विभिन्न प्रकार के अन्याय और सामाजिक गलतियों को दूर करने के लिए जीवन के अधिकार का उपयोग साधन के रूप में किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, कि नागरिकों व्यक्तियों को अवकाश एवं सोने का अधिकार है। चाहे दिन हो या रात पुलिस बिना उचित वारंट के किसी नागरिक को गिरफ्तार नहीं कर सकती है। क्योंकि इसके नागरिक मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।

फरवरी 2012 में दिल्ली में रामलीला मैदान में बाबा रामदेव धरना प्रदर्शन कर रहे थे। तब उन्हें गिरफ्तार कर मध्य रात्रि में सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया। तब सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत शांतिपूर्ण सोने के अधिकार को मौलिक अधिकार की सूची में शामिल किया गया। इस प्रकार सोने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। इसीलिए किसी भी व्यक्ति को उसके इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

सोने में बाधक शोर

शोर की तीव्रता एक निर्धारित समय में किसी व्यक्ति के श्रवण एवं गैर– श्रवण दोनों संस्थाओं को प्रभावित कर सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा शोर की तीव्रता 45 डेसीबल निर्धारित की गई है।

शोर एक व्यक्ति को काम, आराम तथा संवाद की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता हैं। कई शोधों से यह ज्ञात हुआ है, कि शोर की स्थिति में लगातार सोने से एक एकाग्रता में कमी आती है।

बेघरों के लिए  सोने का अधिकार

खुले या सड़क के किनारे, फुटपाथ पर सोने वाले, पाइप में, फ्लाईओवर तथा सिद्धियों के नीचे सोने वाले या किसी अन्य स्थान में सोने वालों को बेघर कहा जाता है। इस परिभाषा के अनुसार भारत की कुल आबादी का लगभग 0.14% या 1.7मिलियन लोग बेघर है।

भारत के शीर्ष पांच महानगरों में कुल बेघर आबादी का लगभग 26% लोग बेघर हैं। बेघर व्यक्ति के लिए नींद लेना मुश्किल है। वे विभिन्न कारणों से अपने आश्रम स्थल के लिए चिंतित होते हैं ।और शांतिपूर्ण माहौल से वंचित होते हैं।

ऐसे कई मामलों में मानवीय न्यायालय ने बेघर लोगों के लिए प्राधिकरण से रेन बसेरा बनाने तथा बेघरों के सोने के संवैधानिक अधिकार सुनिश्चित करने का निर्णय लिया है।

चमेली सिंह बनाम उत्तर प्रदेश 1996 में के केस में उच्च न्यायालय ने विघ्नों को आश्रय स्थल उपलब्ध कराने करवाने को संवैधानिक अधिकार माना है। न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है ,कि भले ही यह मौलिक अधिकार नहीं है। लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति के कारण बेघरों को आश्रय स्थल की आवश्यकता को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।

न्यायालय का निर्णय

सईद मकसूद अली बनाम मध्य प्रदेश मामले में मार्च 2001 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्णय ने निर्णय दिया। कि प्रत्येक नागरिक को संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एक सभ्य वातावरण में रहने और रात को शांतिपूर्ण सोने का अधिकार है। किसी को भी उचित नींद के लिए शांतिपूर्ण माहौल को बिगाड़ने तथा दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करने का अधिकार नहीं है।

न्यायालय ने अपने निर्णय में यह कहा कि, किसी नागरिक को शोर के कष्टप्रद प्रभावों का सामना करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति इसके लिए मजबूर करता है। तो आप न्यायालय की शरण ले सकते हैं।

बड़ा बाजार फायरवर्क्स डीलर्स एसोसिएशन एवं अन्य बनाम पुलिस कमिश्नर एवं अन्य के मामलों में मानवीय कोलकाता उच्च न्यायालय ने 1996 में नींद की आवश्यकता पर अपना निर्णय सुनाया था। न्यायालय ने ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के लेख का उदाहरण देते हुए, कहा कि शोर स्वास्थ्य पर नकारात्मक व बुरा प्रभाव डालता है। इसीलिए कर्मचारियों को रात में काम नहीं करने दिया जाए। क्योंकि पटाखों के फूटने से रात में ध्वनि की निर्धारित सीमा 45 डेसिबल से अधिक हो सकती है। इसीलिए कर्मचारियों को रात में आराम से सोने दिया जाए। अन्यथा ऐसा न करने पर उन पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

निष्कर्ष

 यदि कोई व्यक्ति एक रात ना सोए तो उसके शरीर में इंसुलिन की मात्रा बढ़ जाती है। तथा उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ सकती है। जिसे वह लगभग आधी क्षमता में काम कर पाता है। नींद की कमी से वह तनाव में आ जाता है और चिंता ग्रस्त रहने लगता है। हालांकि भारत में संविधान में नींद के बारे में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है। लेकिन अनुच्छेद 21 में अंतर्गत नींद के अधिकार को मौलिक अधिकार का हिस्सा माना गया है। इसमें बताया गया है, कि नींद का अधिकार व्यक्ति का मूल अधिकार है जो उसे प्राप्त होना चाहिए। यदि कोई इस अधिकार में विघ्न डालता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।

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