Monday, May 20, 2024
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अहोई माता व्रत एवं पूजन विधि

अहोई माता व्रत एवं पूजन विधि :  संतान सुख और उनकी लंबी आयु की कामना के लिए कार्तिक मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। जिस दिन अहोई अष्टमी होती है। उसके अगले सप्ताह में दीवाली मनाई जाती है। इस व्रत में महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और प्रदोष काल में अहोई माता की विधि विधान से पूजा करती हैं। पूरे दिन बिना अन्न– जल ग्रहण किए बिना व्रत करती है।

दिन में अहोई माता की कथा कर रात को तारों को देखकर व्रत खोला जाता है। इस व्रत के दौरान किसी भी प्रकार की नुकीली चीजें जैसे चाकू आदि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। यह व्रत सभी जीवो की रक्षा करना सिखाता है। इस अष्टमी पर रवि योग, गुरु पुष्य योग, सर्व सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग व साध्य योग मिलकर इस पर्व का महत्व और भी बढ़ा देते हैं।

वर्ष 2022 में अहोई माता व्रत तिथि

  दिनाँक 17 अक्टूबर 2022

  दिन सोमवार

अहोई माता व्रत पूजा मुहूर्त

 सायं 5:50 मिनट से सायं 7:05 मिनट तक

 कुल अवधि 1 घंटा 15 मिनट

अष्टमी तिथि का प्रारंभ 17 अक्टूबर 2022 को  सुबह 9:29 मिनट पर

अष्टमी तिथि की समाप्ति 18 अक्टूबर 2022 सुबह 11:57 मिनट पर

अहोई अष्टमी का महत्व

इस दिन महिलाएं अपने बच्चों के कल्याण के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन निर्जला उपवास रखकर रात को चंद्रमा या तारों को देख कर व्रत खोला जाता है। इस दिन जो महिलाएं यह व्रत करती हैं वह शाम के समय दीवार पर आठ कोनो वाली एक पुतली बनाती है। दीवार पर बनाई गई इस पुतली के पास ही साही माता और उनके बच्चे भी बनाए जाते हैं। फिर इनकी पूजा की जाती है। जो महिलाएं नि:संतान होती है वह भी संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी का उपवास रखती है। यह व्रत दीपावली के एक सप्ताह पहले और करवा चौथ के चार दिन बाद आता है।

अहोई अष्टमी व्रत पूजन विधि

  • माताएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प ले।
  • अहोई माता की पूजा के लिए दीवार या कागज पर गैरू से अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ में सेह और उनके साथ पुत्रों का चित्र बनाएं।
  • सायंकाल के समय पूजन के लिए अहोई माता के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर जल से भरा कलश रखे।
  • तत्पश्चात रोली, चावल से अहोई माता की पूजा करें।
  • अहोई माता को मीठे गुलगुले या आटे के हलवे का भोग लगाएं।
  • इस व्रत मे सब प्रकार की कच्ची रसोई बनाई जाती है।
  • दूध भात का भोग लगाया जाता है।
  • फिर रात्रि को संतान को साथ लेकर अहोई माता की पूजा अर्चना की जाती है।
  • तथा बच्चों को मिट्टी के बर्तन भरकर मिठाई दी जाती है जिसे झकरिया कहते हैं।
  • इस दिन गन्ने की पूजा की जाती है।
  • माता को भोग मिट्टी के बर्तन में लगाना चाहिए।
  • मिट्टी के कलश पर स्वास्तिक चिन्ह बनाएं और हाथ में गेहूं के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुने।
  • इसके बाद में तारों को अर्थ्य देकर अपने बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।
  • माता का प्रसाद सभी में वितरित करें।

पूजन सामग्री

तेल से बने पदार्थ जैसे मीठा सीरा, गुलगुले, खीर, चावल और साबुत उड़द की दाल, गेहूं अथवा मक्की के सात दाने हाथ में लेकर तेल का दिया जला कर अहोई माता का पूजन करें। जल के पात्र को रखकर उस पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। मिट्टी की हांडी व बर्तन में खाने वाला सामान डालकर पूजा करें।

अहोई अष्टमी व्रत कथा

 एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी। साहूकार के सभी बेटेऔर बेटी विवाहित हैं। एक दिन साहूकार की बहूए अपनी ननद के साथ खेत मे मिट्टी खोदने गई। मिट्टी खोदते समय साहूकार की बेटी से संयोगवश कुदाली स्याहु (साही) के बच्चे को लग गई। जिससे उसकी मृत्यु हो गई। अनजाने में जब इस पाप से साहूकार की बेटी को बहुत दु:ख हुआ। स्याहु को जब यह ज्ञात हुआ कि इसने मेरे बच्चे को मार डाला है तो उसने ननद की कोख बांधने का श्राप दे दिया।

जब ननंद ने अपनी भाभियों से आग्रह किया कि वह मेरे बजाय अपनी कोख बंधवा ले। सभी छह बड़ी भाभियों ने कोख बंधवाने से मना कर दिया। लेकिन सबसे छोटी बहू ने ननंद के बदले अपनी कोख यह सोचकर बंधवाने के लिए हां कर दिया। उसने सोचा कि जेठानी के बेटा– बेटी भी तो मेरे ही बच्चों के समान है। यदि ननद की कोख बंध गई तो इससे सास को भी दुख होगा। समय बीतता गया और छोटी बहू के जन्मे सात बेटे एक के बाद एक मरते चले गए। इससे दु:खी होकर छोटी बहू ने कई पंडितों को बुलाकर स्याहु के श्राप से मुक्ति पाने के उपाय पूछे।

इस पर पंडितों ने बताया कि तुम गाय की पूजा करो। वह स्याहु माता की बहन है। वह कहेगी तो स्याहु तुम्हारी कोख खोल देगी। छोटी बहू प्रतिदिन गाय की पूजा करने लगी। पूजा से प्रसन्न होकर एक दिन गौ माता ने कहा “तुझे मेरी सेवा करते बहुत दिन हो गए हैं। बता क्या चाहती है”। तब साहूकार की बहू ने पूरी घटना गौ माता को सुनाते हुए कहा स्याहु से मेरी कोख छुड़वा दें। गौ माता में कहां सवेरे अंधेरे में आना। अगले दिन वह जल्दी ही गौ माता को लेकर घने जंगल में स्याहु माता के पास गई।

स्याहु ने दोनो को देखकर कहा “आओ बहन बहुत दिनों बाद में आई हो, यह तुम्हारे साथ कौन है”। तब गौ माता बोली यह मेरी भक्त है और मेरी बहुत सेवा करती है। तब स्याहु बोली मुझे भी मेरे बच्चों की रखवाली के लिए किसी की आवश्यकता है। इस पर साहूकार कीछोटी बहू ने स्याहु के बच्चों की रखवाली करने की बात स्वीकार कर ली और वह वहीं रहने लगी। बहु उन सब की खूब सेवा करती।

यह देख कर एक दिन स्याहु बोली “तुम इतनी उदास क्यों रहती हो”। बहू की आंखों में आंसू आ गए। स्याहु बोली “मुझे बता क्या बात है, मैं तेरा संकट दूर करूंगी”। इस पर बहू बोली वचन दो कि आप मेरा संकट दूर करेगी। स्याहू ने वचन दे दिया। तब बहू ने सारी घटना स्याहू को बताई यह सुनकर स्याहु ने कहा “तूने मुझे ठग लिया, लेकिन कोई बात नहीं मैं तेरी कोख खोलती हूं, आज से तेरी कोई भी संतान नहीं मरेगी”।

इसके बाद स्याहु ने बहुत सारा धन देकर बहू को वहां से विदा किया। बहू ने घर आकर देखा तो उसके मरे हुए सात बेटे जीवित हो गए। उस दिन अहोई अष्टमी थी। सभी के साथ उसने अहोई माता का व्रत रखा। कथा सुनी व पूजा करी। अहोई माता सभी माताओ के कष्टों को दूर करने वाली है। वह महालक्ष्मी जी का प्रतीक है।

अहोई का अर्थ एक यह भी होता है कि “अनहोनी को होनी बनाना”। जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया । जिस तरह माता ने साहूकार की बहू की कोख खोल दी उसी प्रकार इस व्रत को करने वाले सभी माताओं की अहोई माता हर अभिलाषा पूर्ण करती है। और उन्हें पुत्र धन की प्राप्ति होती है।

   “अहोई माता की जय”

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