भारतीय संस्कृति में जप, तप व व्रत का बहुत महत्व है। भारत में शायद ही कोई ऐसा महीना होगा जिसमें कोई व्रत या त्योहार ना आए। यहां तो हर दिन यानी सप्ताह के सातों दिन कोई ना कोई व्रत किया जाता है। प्यार और विश्वास की अभिव्यक्ति से जुड़ा एक ऐसा ही व्रत है करवा चौथ व्रत।
हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के तिथि को आने वाला यह व्रत भारतीय नारी को अखंड सुहाग देने वाला है। करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। यह व्रत मुख्य रुप से भारत में मनाया जाता है। लेकिन आज देश के सभी भागों में यह व्रत किया जाता है। विदेशों में भी भारतीयों की संख्या में वृद्धि होने के कारण वहां पर भी करवा चौथ का व्रत किया जाता है।
सुहागन या पतिव्रता स्त्रियों के लिए करवा चौथ एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है। सुहागिनों के लिए इसके मायने से एक सुहागन महिला ही जान सकती है। वह भूखी, प्यासी रहकर अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करती है।
Table of Contents
करवे का अर्थ क्या होता हैं
करवे का अर्थ है मिट्टी का बर्तन। और चौथ का अर्थ है चतुर्थी। करवा चौथ का व्रत सुहागिन स्त्रियां रखती है। तथा अपने पति की लंबी आयु और खुशहाल जीवन की कामना करती हैं। करवा चौथ पर करवे का विशेष रूप से पूजन किया जाता है। स्त्री धर्म की मर्यादा करवे की भांति ही होती है। जिस प्रकार करवे की सीमाएं होती है उसी प्रकार स्त्री धर्म की भी अपनी कुछ सीमाएं होती है।
वर्ष 2022 मे करवा चौथ व्रत कब हैं
करवा चौथ तिथि प्रारंभ 13अक्टूबर 1:59 मिनट
करवा चौथ तिथि समाप्त 14 अक्टूबर 3: 08 मिनट
करवा चौथ व्रत की शुरुआत कैसे हुई
विभिन्न पौराणिक कथाओं के अनुसार करवा चौथ के व्रत का उद्गम उस समय हुआ था। जब देव और दानवो के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था और युद्ध में देवता परास्त होते नजर आ रहे थे। तब देवताओं ने ब्रह्मा जी से इसका कोई उपाय करने की प्रार्थना की। तब ब्रह्मा जी ने देवताओं की करुण पुकार सुनकर उन्हें सलाह दी कि अगर आप देवो की देव की पत्नियां सच्चे और पवित्र मन से अपने पतियों के लिए प्रार्थना एवं उपवास करें। तो देवता दानवों को परास्त करने में सफल होंगे।
ब्रह्मा जी की सलाह मानकर सभी देव पत्नियों ने कार्तिक मास की चतुर्थी को व्रत किया और रात्रि के समय चंद्रोदय से पहले ही देवता युद्ध जीत गए। तब चंद्रोदय के पश्चात दिनभर की भूखी– प्यासी देव पत्नियों ने अपना– अपना व्रत खोला।
ऐसी मान्यता है कि तभी से करवा चौथ का व्रत किया जाने की परंपरा शुरू हुई है। तभी से पत्नियों द्वारा अपने पति की लंबीआयु, खुशहाली व जीत के लिए यह व्रत किया जाना किया जाने लगा।
संकल्प मंत्र
मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर ।
श्री प्राप्त करक चतुर्थी व्रतमंह करिक्षय।।
अर्थात इस मंत्र से संकल्प लेकर व्रत का प्रारंभ करे। सर्वप्रथम गणेश जी, भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय तथा चंद्रमा की पूजा की जाती है। इसी समय सुहागिन ने कुछ नेवेध भी खाती है। इसे सरगी की कहते हैं। सारा दिन निर्जल व्रत रखने के बाद रात्रि को चंद्रमा के दर्शन कर अर्घ्य कर अपने पति के दर्शन करके ही व्रत करने वाली महिला अन्न –जल ग्रहण करती है। कुछ लोग इस दिन महागौरी तथा महालक्ष्मी दोनों का पूजन भी करते हैं।
करवा चौथ पर सोलह श्रृंगार
भारतीय स्त्री के सोलह श्रृंगार को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। सोलह श्रृंगार से नारी के रूप में चार चांद लग जाते है। सदियों से महिलाएं अपने सौंदर्य व आकर्षण को बढ़ाने के लिए श्रृंगार करती है जैसे सिंदूर, माथे पर बिंदिया, कानों में झुमके, नाक में बाली, गले में मंगलसूत्र, हाथों में चूड़ियां, बाजूबंद, अंगूठी, पैरों में बिछिया, पायल आदि पहनती है।
यह गहने शरीर की बाहरी सुंदरता बढ़ाने के साथ-साथ शरीर के प्रत्येक अंग पर कोई न कोई वैज्ञानिक प्रभाव भी डालते हैं। लेकिन करवा चौथ के दिन स्त्रियां मुख्य रूप से पूरे सोलह श्रृंगार करके चौथ माता की पूजा करती हैं। इस दिन महिलाएं मुख्य रूप से लाल रंग की साड़ी या वस्त्र पहनती है। अगर लाल रंग का वस्त्र ना हो तो वह पीले रंग का भी वस्त्र धारण करके पूरा श्रृंगार करती है। क्योंकि यह व्रत सुहागन स्त्री द्वारा किया जाता है। इसीलिए सोलह श्रृंगार को सुहाग का प्रतीक माना जाता है।
करवा चौथ की पूजन विधि
- रात्रि बेला में भगवान शिव, मां पार्वती, कार्तिकेय, श्री गणेश, व चंद्र देव की पूजा की जाती है।
- सुहागन महिलाएं सुहाग के सभी सामान की पूजा करती हैं।
- सबसे पहले चौथ माता की तस्वीर या पाना पट्टे पर रखे।
- उसके बाद पट्टे पर जल से भरा हुआ लोटा रखें। और मिट्टी के करवे में गेहूं चीनी, बताशे, अखरोट, पैसा आदि रखकर आदि रखें।
- रोली, चावल, गुड़ आदि से सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें।
- रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं और काजल, मेहंदी और रोली की 13 बिंदी लगाएं।
- उसके बाद चौथ माता व गणेश जी को भी बिंदी लगाए।
- अब स्वयं भी बिंदी लगाए। चौथ माता व गणेश जी को वस्त्र के रुप में मौली अर्पित करें।
- धूप दीप नैवेद्य आदि अर्पित करके उन से अमर सुहाग का वरदान मांगे। चौथ माता को सुहाग का सामान चढ़ाए। साथ ही अपनी सासू मां को देने के लिए भी सुहाग का सामान रखे।
- पूजा होने के बाद मे गेहूं के 13 दाने ले। और उसके बाद मां चौथ माता की कथा सुने।
- कथा सुनने के बाद अपनी सासू मां व घर के बड़ों की चरण स्पर्श करें। और करवा सासू मां को दे। और उन्हे वस्त्र भी भेट करे।
- अगर सासू मां ना हो तो घर में बड़ी जेठानी या बडी ननंद को यह करवा दे।
- उसके बाद पानी का लोटा ले और गेहूं के दाने अलग रख लें।
- रात्रि में चंद्रोदय होने पर पानी में गेहूं के दाने डालकर उससे चंद्रमा को अर्ध्य दें।
- फिर अपने पति के दर्शन करें। उनके पैर छूकर आशीर्वाद ले।
- उसके बाद भोजन करें।
- यदि व्रत कथा पंडिताइन से सुनी हो तो गेहूं, चीनी और पैसा उसे दे। नहीं तो किसी कन्या को दान करते।
करवा चौथ की व्रत कथा
महाभारत काल में जब अर्जुन नीलगिरी पर्वत पर भ्रमण करने गए तो काफी समय तक नहीं लौटे। द्रोपती अर्जुन की चिंता में डूब गई। उस समय श्री कृष्ण ने कहा कि भगवान शंकर ने माता पार्वती को जो विघ्नविनाशक कथा सुनाई थी वही मैं तुम्हें सुनाता हूं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को निर्जल व्रत करके यह कथा सुनी जाती है।
एक समय की बात है एक वेद शर्मा नामक ब्राह्मण नगर में रहता था। उसके चार पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री का नाम वीरवती था। तथा उसका विवाह सुदर्शन नामक ब्राह्मण से कर दिया गया। करवा चौथ के दिन ब्राह्मण की बेटी ने व्रत रखा। लेकिन चंद्रोदय से पूर्व ही उसे भूख सताने लगी भूख से व्याकुल होने के कारण उसका चेहरा मुरझा गया। अपनी बहन को देखकर भाइयों का चेहरा भी मुरझा गया। भाई उसका यह मुरझाया हुआ चेहरा ना देख सके। अतः उन्होंने वीरवती से व्रत खोलने का आग्रह किया। तब इसके लिए तैयार नहीं हुई। तभी भाइयों ने एक योजना बनाई।
उन्होंने एक पीपल के वृक्ष की ओट में प्रकाश करके वीरवति से कहा देखो चंद्रमा निकल आया है। वीरवती बहुत ही भोली थी। उसने अपने भाइयों की बात पर विश्वास करके उसने सोचा कि चांद निकल आया है। तब वीरवती ने अपनी भाभी से कहा कि आओ भाभी चांद निकल आया है चांद देख लो, और व्रत खोल लो।
तब भाभियों ने कहा नहीं ननंद बाईसा यह हमारा चांद नहीं है। यह आपका चांद है। आप देख कर व्रत खोल लो ऐसा सुनकर वह व्रत खोलने के लिए चांद को देखने गई। प्रकाश को देखकर उसने व्रत खोल ना शुरू ही किया था कि पहला निवाला लिया तो पहले कोर में बाल आया। दूसरा निवाला लिया तो ससुराल से बुलाया आया कि आपके पति की तबीयत खराब है। आपको जल्दी से ससुराल बुलाया है। यह सुनते ही वह जोर– जोर से रोने लगी। जब ससुराल जाने के लिए तैयार हो रही थी तब हाथ में हमेशा कभी काला, कभी नीला कपड़ा आने लगा। यह देखकर उसकी मां ने उसे एक चांदी का सिक्का दिया और कहा कि जो कोई तुझे अमर सुहाग का आशीर्वाद दे। उसे यह चांदी का सिक्का दे देना।
संयोगवश उसी समय वहां से देवी इंद्राणी अन्य देव पत्नियों के साथ गुजर रही थी। वह किसी औरत की जोर –जोर से रोने की आवाज सुनकर वहां पहुंची और उसके रोने का कारण जानना चाहा। उसकी व्यथा सुनकर रानी ने कहा कि चंद्रोदय से पहले व्रत खोल लेने के कारण तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है। देवी इंद्राणी ने कहा कि अगर तुम पूरे 12 महीने तक अपने पति के मृत शरीर की सेवा करते हुए प्रत्येक चतुर्थी को विधिवत व्रत करोगी और अगली करवा चौथ को विधिवत शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय जी के सहित चंद्रमा की पूजा करके चंद्रमा निकलने के बाद अर्ध्य देकर अन्न– जल ग्रहण करो। तो निश्चित ही तुम्हारा सुहाग जीवित हो जाएगा।
ब्राह्मण कन्या के भाइयों को अपने से हुई भारी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने अपनी बहन से इसके लिए क्षमा याचना की। तब ब्राह्मण कन्या ने इंद्राणी की बातों पर अमल करते हुए ससुराल की ओर रवाना हुई। रास्ते में जो भी उसे औरत मिलती वह उसके पैर छूती। पर उसे किसी ने भी अमर सुहाग का वरदान नहीं दिया। घर की चौखट पर पहुंची तो जेठानी की लड़की पलंग पर सो रही थी। तो उसने उसके पैर छुए। उसने अमर सुहाग का आशीष दिया। तब उस ब्राह्मण कन्या ने उसे चांदी का सिक्का दे दिया और अंदर गई। तो उसका पति मरा हुआ था। तब उसने अपने सास से कहा कि मैं अपने पति को नहीं जलाने दूंगी। आप मुझे मेरे पति के साथ एक अलग झोपड़ी में रहने दे।
यह सुनकर सासु ने बहू और बेटे को एक झोपड़ी में रख दिया। और रोज उसकी नानद जाकर उसे ठंडी बासी रोटियां देकर आती थी इस तरह माघ की चौथ आई तो उसने चौथ माता के पैर पकड़ लिए। और कहां की हे, मां मेरा सुहाग अमर कर दो। पर चौथ माता बोली कि तू पापिन है, दिन में चांद देखने वाली है, अपने पति को खाने वाली है, अब तेरा कुछ नहीं होगा ऐसा कहने लगी। तब उसमें चौथ माता के पांव पकड़ लिए और कहने लगी है चौथ माता मुझसे गलती हुई है। मेरा अपराध क्षमा करें। और मेरे पति को जीवित करें।
तब चौथ माता बोली कि मैं कुछ नहीं कर सकती हूं। जब चैत्र माह की चौथ माता आएगी। तब उनसे मांगना अपना सुहाग। इस प्रकार चैत्र व वैशाख की चौथ माता आई। सभी ने यही बात कही और कहा कि जब कार्तिक माह की चौथ माता आएगी। तब उनसे तू तेरा सुहाग मांगना। वही तुझसे नाराज है। कुछ समय बाद कार्तिक चौथ का व्रत आया। ब्राह्मण की लड़की ने चौथ माता का व्रत किया। रात को जब चौथ आई तो उसने माता के पैर पकड़ लिए और कहा कि हे मां मुझ से भूल हो गई है। आप मेरे सुहाग को जीवित कर दे। मैं पापी हूं, मुझसे अपराध हुआ है। आप मुझे क्षमा कर दें और मेरा सुहाग जीवित कर दें।
तब चौथ माता बोली ना भाइयों की प्यारी बहना करवा ले, धनी भूखानी करवा ले, दिन में चौथ चांद देखने वाली करवा लें। तब ब्राह्मण की लड़की रोने लगी। ब्राह्मण की लड़की का रोना देखकर चौथ माता को दया आ गई और उन्होंने छोटी उंगली से मेहंदी, आंख से काजल, माथे से सिन्दूर निकालकर उसके मरे हुए पति छींटे लगाए।छींटे लगाते ही उसका पति जीवित हो गया। दोनों ने चौथ माता से क्षमा मांगी और कहा की चौथ माता हम आपका विधिवत हर वर्ष व्रत करेंगे। इतना कहकर चौथ माता अंतर्ध्यान हो गई।
दोनों पति-पत्नी चौपड़ पासा खेलने लगे। इतने में ही रोटी लेकर ननद आई तो उसने देखा कि भाभी तो किसी से बातें कर रही है। वह जाकर अपनी मां से बोली की भाभी तो किसी के साथ बातें कर रही है और चौपड़ पासा खेल रही। यह सुनते ही उसकी सास झोपड़ी की तरफ आती है। तो देखती है कि बहू बेटा दोनों चौपड़ पासा खेल रहे हैं। यह देख कर सास बहुत बहुत खुश होती है। और बहु से पूछती है कि बेटा यह कैसे हुआ। तो उसने सारी बात सासु मां को बताई।
सासु मां ने कहा कि गांव में कोई इस बात का विश्वास नहीं करेगा तब वह बोली कि जब उल्टा करवा फेरेंगे तो वापस मेरा पति वापस मर जाएगा। और जब सीधा करवा फेरेंगे तो मेरा पति वापस जीवित हो जाएगा। ऐसा कहकर गांव में ढिंढोरा पिटवा दिया गया गांव में सभी लोग चौथ माता का चमत्कार देखने आए। उल्टा करवा फेरते ही उसका पति मर गया और सीधा करवा फेरते ही उसका पति जीवित हो गया। यह देखकर सभी चौथ माता का चमत्कार जान गए। और सभी चौथ माता का व्रत करने लगे। इस प्रकार इंद्राणी द्वारा बताई गई विधि के अनुसार प्रत्येक चतुर्थी को विधिवत व्रत किया और चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देकर अपना व्रत खोला। व्रत के प्रभाव से उसका पति जीवित हो उठा।
भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को यह कथा सुनाने के बाद कहा अगर तुम भी विधिवत सच्चे मन से करवा चौथ का व्रत करो तो तुम्हारे समझ संकट दूर हो जाएंगे। तब द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत रखा और उसके प्रभाव से पांडवों को महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त हुई।
हे चौथ माता जैसा ब्राह्मण की लड़की के साथ हुआ वैसा किसी के साथ मत करना। जैसे ब्राह्मण की लड़की को अमर सुहाग का वरदान दिया वैसा अमर सुहाग का वरदान सभी को देना।
“ बोलो चौथ माता की जय”
रिश्तो व भावनाओं का जुड़ा करवा चौथ का व्रत
यह व्रत भावनात्मक संबंधों को बढ़ाता है और इससे रिश्ते मजबूत होते हैं। यह व्रत भारतीय संस्कृति के पवित्र बंधन और प्रेम का प्रतीक है। परिवार मे प्रेम को बढ़ाता है। परिवार को एकजुट रखता है। स्त्रियां पूर्ण सोलह श्रृंगार करके ईश्वर के समक्ष व्रत के उपरांत यह प्रण करती हैं कि वे मन, वचन, कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेगी और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ को प्राप्त करेंगे।
करवा चौथ व्रत रखने वाली महिलाओं की संख्या हमारे देश में सबसे अधिक है। यह त्यौहार पति– पत्नी के अटूट प्रेम का प्रतीक है। पति भी यही इच्छा रखते हैं कि इस दिन रह घर पर ही रहे। इस तरह घर में उत्साह और स्फूर्ति लाते हैं। करवा चौथ व्रत करने से पति– पत्नी में आपसी प्रेम बढ़ता है। और घर में आने वाली बाधाएं दूर होती है।